शरीर के भीतर छिपा चिकित्सक: कैसे इंसान खुद करता है अपना इलाज

Sun 28-Dec-2025,08:50 PM IST +05:30

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शरीर के भीतर छिपा चिकित्सक: कैसे इंसान खुद करता है अपना इलाज Health-Tips
  • शरीर में स्व-उपचार क्षमता बीमारियों से लड़ने में सक्षम.

  • आयुर्वेद और विज्ञान दोनों मानते हैं शरीर की हीलिंग शक्ति.

  • नींद, योग, ध्यान और संतुलित आहार से स्वास्थ्य बेहतर.

Maharashtra / Nagpur :

AGCNN / बीमारी होते ही दवा की ओर भागना आज की सबसे आम आदत बन चुकी है। सिर दर्द हो, बुखार आए या थकान महसूस हो—हम तुरंत किसी न किसी गोली की तलाश में लग जाते हैं। लेकिन चिकित्सा विज्ञान और आयुर्वेद दोनों ही इस सच्चाई को स्वीकार करते हैं कि मानव शरीर अपने आप में एक पूर्ण चिकित्सक है। शरीर के भीतर मौजूद स्व-उपचार क्षमता (Self-Healing Capacity) उसे बीमारियों से लड़ने, टूटे-फूटे ऊतकों को ठीक करने और संतुलन बनाए रखने में सक्षम बनाती है। यदि शरीर को सही वातावरण, समय और सहयोग मिले, तो वह कई रोगों से खुद ही उबर सकता है।

मानव शरीर की यह क्षमता किसी चमत्कार से कम नहीं है। कट लगने पर बिना किसी दवा के घाव का भर जाना, हड्डी टूटने के बाद धीरे-धीरे जुड़ जाना या संक्रमण के समय बुखार का आना—ये सभी शरीर की प्राकृतिक उपचार प्रक्रिया के उदाहरण हैं। वास्तव में बुखार कोई बीमारी नहीं, बल्कि शरीर की रक्षा रणनीति है, जिसके जरिए वह बैक्टीरिया और वायरस को कमजोर करता है। इसी तरह दर्द भी एक चेतावनी है, जो हमें बताता है कि शरीर में कुछ असंतुलन पैदा हो गया है।

आधुनिक विज्ञान इस स्व-उपचार शक्ति को वैज्ञानिक आधार देता है। शोध बताते हैं कि शरीर में मौजूद स्टेम सेल्स क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत और नए ऊतकों के निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं। इम्यून सिस्टम हर दिन हजारों रोगाणुओं से लड़ता है, जिनका हमें एहसास तक नहीं होता। लीवर जैसे अंग की खासियत यह है कि उसका एक हिस्सा भी सुरक्षित रहे, तो वह खुद को दोबारा विकसित कर सकता है। वहीं गट-ब्रेन एक्सिस आंत और मस्तिष्क के बीच संतुलन बनाकर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

आयुर्वेद में शरीर की इस शक्ति को हजारों साल पहले ही पहचान लिया गया था। आयुर्वेद के अनुसार शरीर तीन दोषों—वात, पित्त और कफ—से संचालित होता है। जब ये संतुलन में रहते हैं, तब शरीर खुद को रोगों से बचाने में सक्षम रहता है। आयुर्वेद ‘ओज’ को शरीर की जीवन शक्ति मानता है, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता का आधार है। वहीं ‘अग्नि’ यानी पाचन शक्ति को सही रखने पर शरीर स्वतः ही कई बीमारियों से दूर रहता है।

चरक संहिता जैसे आयुर्वेदिक ग्रंथों में स्पष्ट लिखा है कि संतुलित आहार, सही निद्रा और अनुशासित जीवनशैली शरीर को स्वस्थ बनाए रखती है। जैसे भोजन पकाने के लिए सही अग्नि जरूरी है, वैसे ही शरीर के भीतर सही पाचन और ऊर्जा संतुलन जरूरी है। आयुर्वेद का मानना है कि औषधि केवल सहायक होती है, वास्तविक इलाज शरीर की आंतरिक शक्ति ही करती है।

शरीर कई तरीकों से खुद का उपचार करता है। सूजन को अक्सर बीमारी समझ लिया जाता है, जबकि यह शरीर का सुरक्षा कवच है, जो चोट या संक्रमण के समय सक्रिय होता है। नींद को सबसे बड़ी दवा कहा जाता है, क्योंकि गहरी नींद के दौरान शरीर में ग्रोथ हार्मोन निकलता है और रिपेयर मैकेनिज्म तेज हो जाता है। यही कारण है कि पर्याप्त नींद लेने वाले लोग जल्दी स्वस्थ होते हैं।

कुछ वैज्ञानिक तथ्य इस क्षमता को और मजबूत बनाते हैं। माना जाता है कि मानव शरीर हर 7 से 10 साल में लगभग पूरी तरह नया हो जाता है। हमारी आंतें करीब 70 प्रतिशत इम्यून सिस्टम को नियंत्रित करती हैं। सकारात्मक सोच और ध्यान से शरीर की हीलिंग स्पीड बढ़ती है। उपवास के दौरान ऑटोफैगी प्रक्रिया शुरू होती है, जिसमें शरीर खुद ही खराब और बीमार कोशिकाओं को साफ करता है। पेट में मौजूद हाइड्रोक्लोरिक एसिड इतना शक्तिशाली होता है कि वह कठिन पदार्थों को भी गलाने की क्षमता रखता है, फिर भी शरीर की सुरक्षा परत उसे नुकसान से बचाती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि व्यक्ति शरीर को खुद इलाज करने का अवसर दे, तो कई समस्याएं बिना दवा के नियंत्रित हो सकती हैं। इसके लिए समय पर और हल्का भोजन, रोजाना 7–8 घंटे की गहरी नींद, सूर्य प्रकाश और ताजी हवा बेहद जरूरी है। योग, प्राणायाम और ध्यान से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि शरीर की स्व-उपचार क्षमता भी बढ़ती है। प्राकृतिक आहार और अनावश्यक दवाओं से दूरी शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करती है।

अंततः यह समझना जरूरी है कि दवा बीमारी को नहीं, बल्कि शरीर को ठीक होने में मदद करती है। असली चिकित्सक हमारे भीतर मौजूद है। जब हम अपने शरीर के संकेतों को समझते हैं और संतुलित जीवनशैली अपनाते हैं, तब मानव शरीर सच में दुनिया का सबसे बड़ा डॉक्टर साबित होता है।